अगर बॉक्सिंग को बनाना चाहते हैं करियर
सलाह और चेतावनीब्रिटेन में पैसों के लिए खेले जाने वाले खेल के रूप में लोकप्रिय था।
- दुनिया भर में लोग बॉक्सिंग के दीवाने हैं। इंटरनैशनल लेवल पर इस ग्लैमरस खेल में पैसे की कमी नहीं है। विजेंदर सिंह, मैरी कॉम, अखिल कुमार जैसे कई अच्छे बॉक्सर भारत ने दिए हैं। बॉक्सिंग को बतौर करियर अपनाने के लिए क्या करें, बॉक्सिंग बहुत पुराना गेम है। 16वीं से 18वीं सदी तक बॉक्सिंग ग्रेट ब्रिटेन में पैसों के लिए खेले जाने वाले खेल के रूप में लोकप्रिय था। हालांकि 19वीं सदी से इंग्लैंड और अमेरिका में इसे फिर से व्यवस्थित तरीके से शुरू किया गया। हमारे देश में विजेंदर सिंह, मैरी कॉम, एल. सरिता देवी, डिंको सिंह जैसे कई खिलाड़ियों ने बॉक्सिंग में धाक जमाई है। विजेंदर ने देश के लिए बॉक्सिंग में पहला ओलंपिक मेडल जीता तो फिलहाल वह WBA एशिया पसिफिक सुपर मिडलवेट चैंपियन हैं। मैरी कॉम पांच बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी हैं और ओलिंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल भी हासिल कर चुकी हैं। क्या है बॉक्सिंग बॉक्सिंग में दो लोग बॉक्सिंग रिंग के अंदर प्रोटेक्टिव ग्लव्स पहनकर एक-दूसरे पर नियमों के अनुसार पंच करते हैं। इसके लिए 1-3 मिनट के कुछ राउंड तय किए जाते हैं। बॉक्सिंग मैच के दौरान रिंग में बॉक्सरों के अलावा एक रेफरी भी होता है। इसमें रिजल्ट मुकाबले के अंत में जजों के दिए स्कोर के आधार पर होता है। इसके अलावा, नियम तोड़ने के कारण दूसरे बॉक्सर के डिस्क्वॉलिफाई होने या लड़ने की हालत में ना होने या उसके द्वारा टॉवल फेंककर मुकाबले से हटने पर भी बॉक्सिंग में जीत-हार का फैसला हो जाता है। ओलिंपिक्स में मुकाबले के अंत तक दोनों बॉक्सरों के पॉइंट बराबर रहने पर जज तकनीक के आधार पर विनर घोषित करते हैं। प्रफेशनल बॉक्सिंग में अगर मुकाबले के अंत तक दोनों बॉक्सर्स के पॉइंट बराबर हों तो मुकाबला ड्रॉ माना जाता है। बॉक्सिंग मुख्यतः दो तरह की होती है: ऐमेचर और प्रफेशनल 1. ऐमेचर बॉक्सिंग: ओलिंपिक्स और कॉमनवेल्थ समेत दुनिया की तमाम इंटरनैशनल प्रतियोगिताओं में होती है। 2. प्रफेशनल बॉक्सिंग: बड़ी-बड़ी कंपनियां प्रमोटर होती हैं और दुनिया भर के अलग-अलग देशों में प्रफेशनल बॉक्सरों के बीच कॉम्पिटिशन कराती हैं। इसमें पैसा बहुत ज्यादा मिलता है। प्रफेशनल खेलनेवाले आमतौर पर एमेचर में लौट नहीं पाते, क्योंकि दोनों को खेलने का तरीका अलग होता है। किस उम्र में करें शुरुआत बॉक्सिंग खतरनाक खेल है इसलिए इसे शुरू करने की सही उम्र 8-10 साल मानी जाती है। इस उम्र का बच्चा खुद को ज्यादा बेहतर तरीके से बचा सकता है। बॉक्सिंग के लिए समर्पण बहुत जरूरी है। बॉक्सिंग में बहुत ज्यादा ताकत लगती है इसलिए बहुत छोटी उम्र में शुरू करना सही नहीं है। बॉक्सिंग शुरू करने से पहले जूडो-कराटे या किसी और गेम को सीखने की जरूरत नहीं है। हां, रनिंग, स्वीमिंग आदि करना बेहतर है ताकि स्टैमिना बन सके। कौन बन सकता है बॉक्सर बॉक्सिंग कोच की मानें तो एक बॉक्सर अपनी टेक्नीक, आक्रामकता, फुर्ती, मजबूती और एटिट्यूड से सफल होता है इसलिए किसी बच्चे को बॉक्सर बनाने की सोचने से पहले यह जरूर देखना चाहिए कि उसमें ये सब गुण हैं या नहीं? आक्रामकता का मतलब यह नहीं है कि बच्चा अगर रोज लड़ाई-झगड़ा करता है तो वह बहुत अच्छा बॉक्सर बनेगा। बच्चे में फुर्ती, जोश और जीत का एटिट्यूड होना जरूरी है। कैसे पहचानें सही अकैडमी बेहतर कोच बच्चों को सही टेक्निक बता सकता है और बेहतर तरीके से तैयारी करना सिखा सकता है। ट्रेनर या बॉक्सिंग अकैडमी वही बेहतर है जो हमेशा आपकी जरूरतों पर ध्यान दे। अगर आप थक गए हैं तो वह आपको और ट्रेनिंग के लिए मजबूर नहीं करेंगे। आपका वर्कआउट आपकी जरूरतों और क्षमताओं के हिसाब से होगा, न कि वैसा जैसा कि कोई और बॉक्सर कर रहा होगा। एक अच्छी बॉक्सिंग अकैडमी में लेटेस्ट ट्रेनिंग इक्विपमेंट्स या वर्ल्ड चैंपियन ट्रेनर का होना जरूरी नहीं है। अकैडमी की सबसे जरूरी चीज है वहां का माहौल, जिसमें आपको सॉलिड बॉक्सिंग टेक्नीक सीखने और आगे बढ़ने का मौका मिले। अकैडमी चुनते वक्त इन बातों का भी ध्यान रखना जरूरी दीवारों पर लगी तस्वीरें: अकैडमी की पहचान करने का सबसे आसान तरीका है उसकी दीवारें देखना। आमतौर पर बॉक्सिंग अकैडमी की दीवारों पर न्यूजपेपर की कटिंग्स, अकैडमी से लोकल और नैशनल चैंपियन बन चुके पूर्व या मौजूदा फाइटर्स की फोटो, अपकमिंग टूर्नामेंट्स और लोकल बॉक्सिंग टूर्नामेंट्स के पोस्टर लगे होते हैं। सिर्फ मोहम्मद अली, माइक टायसन, विजेंदर सिंह और मैरी कॉम के पोस्टर लगी अकैडमी से बचें क्योंकि एक अच्छी अकैडमी खुद के चैंपियंस पर ज्यादा गर्व करती है। मालिक या हेड ट्रेनर से मुलाकात: वह अकैडमी ज्यादा बेहतर मानी जाती है जहां आप उसके मालिक या हेड ट्रेनर से सीधे मुलाकात कर सकें। इससे आपको अकैडमी चलाने वाले शख्स की पर्सनैलिटी का अंदाजा हो जाएगा। इस खेल में पर्सनैलिटी काफी अहमियत रखती है। ट्रेनिंग सेशन देखना: आप वहां के कुछ ट्रेनिंग सेशन भी देख सकते हैं।
एक अच्छी अकैडमी में ढेर सारे ट्रेनर्स रहते हैं।
इससे आपको आइडिया हो जाएगा कि कोच कैसे बच्चों को सिखा रहा है। अगर वहां सिर्फ अटैक सिखाया जा रहा है तो यह अकैडमी अच्छी नहीं हो सकती। बॉक्सिंग अकैडमी का काम होता है टेक्नीक को बेहतर करना। पिता ट्रेनर, बच्चा बॉक्सर: अगर किसी अकैडमी में आपको कोई पिता अपने बच्चे को ट्रेनिंग देता मिल जाए तो समझ लीजिए कि वह अकैडमी बेस्ट है। कोई भी पिता अपने बच्चे के लिए खराब अकैडमी नहीं चुनता। बिजी रिंग: रिंग किसी भी बॉक्सिंग अकैडमी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर आपको तमाम लोग प्रैक्टिस करते तो दिख रहे हैं, लेकिन रिंग में कोई नहीं है तो यह अकैडमी सही नहीं हो सकती। एक अच्छी अकैडमी की रिंग कभी भी खाली नहीं रहती। हमेशा वहां कोई-ना-कोई प्रैक्टिस करता ही रहता है। ट्रेनर्स: एक अच्छी अकैडमी में ढेर सारे ट्रेनर्स रहते हैं। बेहतरीन अकैडमी में अमूमन एक बॉक्सर पर एक ट्रेनर होता ही है। ऐसा न भी हो तब भी एक ट्रेनर पर 2-3 बॉक्सर्स से ज्यादा नहीं होने चाहिए। अकैडमी में एक या दो ट्रेनर्स का कंट्रोल नहीं होना चाहिए। अच्छी अकैडमी में सारे ट्रेनर्स अपने सुझाव देते रहते हैं। ऐसे में अगर आप अच्छा नहीं कर पा रहे तो कोई-ना-कोई हमेशा आपको टोकने के लिए वहां मौजूद रहता ही है।कॉम्पिटिशन: अगर कोई अकैडमी अपने यहां लोगों को कॉम्पिटिशन के लिए तैयार नहीं करा रही तो वह बेकार है क्योंकि आप अपने बच्चे को वजन घटाने के लिए अकैडमी नहीं भेज रहे। क्या हों सुविधाएं बॉक्सिंग अकैडमी में सबसे जरूरी चीज होती है रिंग। किसी भी अकैडमी में रिंग की संख्या और उसकी क्वॉलिटी काफी मायने रखती है। अकैडमी चुनते वक्त यह जरूर देखें कि वहां कितनी रिंग हैं और हर रिंग में कितने बच्चे प्रैक्टिस करते हैं। इससे काफी हद तक आपको पता चल जाएगा कि आपके बच्चे को वहां कितना टाइम मिल पाएगा। बॉक्सिंग में प्लेयर्स को चोट भी लगती रहती है इसलिए यह जरूर देखें कि वहां डॉक्टर या फर्स्ट ऐड की अच्छी सुविधा है कि नहीं। अकैडमी में जिम, शॉवर वगैरह का होना भी जरूरी है।क्या हो कोच की योग्यता बॉक्सिंग सीखने में सही कोच बहुत महत्व रखता है। अकैडमी के कोच के बारे में जरूर पता करें कि वह पहले खेल चुका है या नहीं। कोचिंग में डिग्री या डिप्लोमा होना भी बेहद जरूरी है। हमारे यहां बॉक्सिंग कोच नैशनल इंस्टिस्टूट ऑफ स्पोर्ट्स (NIS) सर्टिफाइड होते हैं। साइंटिफिक तरीके से सीखा व्यक्ति अच्छी तरह से चीजों को समझता है और वह चीजों को अच्छे से समझा भी सकता है। अगर ट्रेनर पहले खेल चुका है तो यह सबसे अच्छी बात है। अगर उसने बॉक्सिंग नहीं खेला है तो उसके पास कोचिंग का सर्टिफिकेट और ठीक-ठाक एक्सपीरियंस होना बहुत जरूरी है। इसके लिए आप कोच का लाइसेंस भी देख सकते हैं। कई बार ऐसा होता है कि कोई प्लेयर कामयाब होता है तो तमाम लोग उसे अपना स्टूडेंट बताने लगते हैं। ऐसे मामलों में ज्यादा सावधान रहें। अगर दो-तीन जगह एक ही प्लेयर को अपने-अपने सेंटर का बताया जा रहा हो तो इसका मतलब है कि कुछ गड़बड़ है। कोच से अच्छे से पूछकर आश्वस्त हो लें कि सही क्या है, उस प्लेयर ने किस उम्र में यहां कोचिंग ली थी, वगैरह-वगैरह। क्या है फीस बॉक्सिंग की फीस अलग-अलग एज ग्रुप और ट्रेनिंग टाइम पर डिपेंड करती है। वैसे शुरुआती लेवल पर 2500 रुपये महीना फीस ली जाती है। कुछ अकैडमी ऐसी भी हैं जहां पारिवारिक स्थिति बहुत अच्छी न होने पर फीस में छूट भी मिलती है। इस फीस में आपको नॉर्मल ग्रुप ट्रेनिंग मिलेगी, हफ्ते में दो-तीन दिन, 1-2 घंटे के लिए। अगर आपको अपने बच्चे को इससे ज्यादा ट्रेनिंग करानी है तो उसकी फीस ज्यादा होगी। जब बच्चा स्टेट लेवल तक पहुंच जाता है तो ज्यादातर अकैडमी उसकी ट्रेनिंग फ्री कर देती हैं। बॉक्सिंग बहुत महंगा खेल नहीं है। ठीक-ठाक बॉक्सिंग ग्लव्स 500-700 रुपये तक आ जाते हैं। इसी तरह माउथगार्ड 200-400 में आ जाता है। ग्लव्स और माउथगार्ड से शुरुआत कर बाद में बच्चे की जरूरत के हिसाब से धीरे-धीरे उसे एसेसरीज दिलाई जा सकती हैं। कितनी देर तक ट्रेनिंग खेल कोई भी हो, जरूरत से ज्यादा ट्रेनिंग चोटों को न्यौता देती है, जबकि कम ट्रेनिंग से बच्चे को चीजें देर से समझ आती हैं। हालांकि बच्चे को किसी भी खेल में डालने से पहले उसकी रुचि जरूर जाननी चाहिए। कोई भी ऐसी चीज जो उसे बोझ लगे या जो वह झेल न पाए, उससे जबरदस्ती कराने से उसका मन खेल से हटने लगेगा। 16 साल से कम उम्र के बच्चे के लिए हफ्ते में 15 घंटे से ज्यादा की ट्रेनिंग नहीं होनी चाहिए। 8 से 12 साल तक के बच्चे के लिए हफ्ते में 6-8 घंटे की ट्रेनिंग और दो घंटे की स्पेशल फिटनेस ट्रेनिंग काफी है। फिटनेस ट्रेनिंग में मसल्स बिल्डिंग एक्सरसाइज, जंपिंग, स्प्रिंट ट्रेनिंग बेहद जरूरी हैं। बेहतर रहता है कि बच्चे को धीरे-धीरे चीजों को सीखने दें
कराटे सीखने के लिए बुनियादी जानकारी
- अपनी बॉडी को स्ट्रेच करते समय शरीर के हर अंग को स्ट्रेच करें। लगातार अभ्यास करते रहना जारी रखें और अभ्यास के दौरान शुरुआत में आप ध्यान लगाने या मन को शांत करने की कोशिश करें। अपने प्रतिद्वंद्वी को कभी भी अपने से कम या ज्यादा न समझें। सुनिश्चित करें कि आपका निचला शरीर पूरी तरह से नियंत्रण में रहे। हमेशा सभी नियमों का पालन करें और सावधानी रखें। कराटे एक जापानी मार्शल आर्ट तकनीक है, जिसमें अपनी रक्षा के लिए किए जाने वाले हमले और जवाबी हमले के लिए किए जाने शारीरिक मूवमेंट को समान रूप से विकसित करने की आवश्यकता होती है। हालांकि, यह खेल एक व्यक्ति को हमला करने और आत्मरक्षा की कला सिखाता है। लेकिन, इसका एकमात्र मकसद आत्म-सुधार है। कराटे में मुक़ाबला जीतना ही एकमात्र लक्ष्य नहीं है। कराटे ट्रेनिंग में एक शख़्स ब्लॉक, पंच और किक की तकनीकों के जरिए आत्मरक्षा के सबसे प्रभावशाली तरीकों को सीखता है। कराटे कैसे सीखते हैं, कराटे सीखने के लिए बुनियादी जानकारी, कराटे किक कैसे सीखें, घर पर कराटे कैसे सीखें, कराटे सीखने के लिए क्या करें, कराटे कितने प्रकार के होते हैं, कराटे सीखने की उम्र, कराटे सीखने के फायदे और कराटे ट्रेनिंग से जुड़ी अन्य जरूरी जानकारियों पर नज़र डालते हैं। कराटे में अनुशासन, दिमागी संतुलन और नियमित रूप से सीखने की ललक को जारी रखना इसके कुछ अहम पहलू हैं। कराटे में 'कारा’ शब्द का अर्थ है खाली और ‘ते’ का अर्थ है हाथ। कराटे के बाद ‘डो’ जोड़ देने से कराटे-डो हो जाता है, जिसका अर्थ खाली हाथों से खुद का बचाव करना होता है। दिवंगत महान गिचिन फुनाकोशी को शोटोकान कराटे का जनक माना जाता है। वैसे तो माना जाता है कि कराटे की उत्पत्ति जापान के 'ताए' और चीन के 'कुंग फू' से हुई है। लेकिन ये जापानी ही थे, जिन्होंने इस कला को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने में बड़ा योगदान दिया है। इसलिए इस खेल में कुछ जापानी शब्दों का शामिल होना स्वाभाविक है। कराटे कैसे सीखते हैं, कराटे ट्रेनिंग शुरू करने से पहले इस खेल को समझने के लिए कुछ जापानी शब्दों का अर्थ समझना जरूरी है। जापान कराटे एसोसिएशन से मान्यता प्राप्त प्रशिक्षक सोमनाथ पाल चौधरी ने Olympics.com से कहा, "अगर कोई व्यक्ति पांच या छह साल की उम्र में कराटे की ट्रेनिंग शुरू करता है, तो यह उसके स्वभाव में शामिल हो जाता है। इसे एक वयस्क में विकसित करना बहुत कठिन है। किसी बच्चे को ये बातें सिखाना निश्चित रूप से बहुत आसान है।" "इसके अलावा, शारीरिक पहलू भी हैं। चार या पांच साल की उम्र में शरीर बहुत लचीला होता है। हम उन्हें आसानी से बेहतरीन एथलीट बना सकते हैं।" कराटे कैसे सीखें कराटे के अपने आप में कई रूप हैं, जैसे गोजू काई, शोटोकान, शितो रयू, वाडो रयू और क्योकुशिन काई आदि। हर स्टाइल का अपना एक रूप होता है। यह एक छात्र को तय करना होता है कि उसे कराटे की कौन सी शैली बेहतर लगती है और वह किसे सीखना चाहता है। इसके बाद उसे तय करना चाहिए कि उसे किस स्कूल में कराटे ट्रेनिंग शुरू करनी है। एक सफल कराटेका बनने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि कराटे कैसे सीखते हैं। कराटे ट्रेनिंग के लिए एक सही डोजो (स्कूल) और एक अच्छे कराटे मास्टर का होना बहुत ज़रूरी है। कराटे की बुनियादी बातों से परिचित हो जाने के बाद, उसे अभ्यास में लाकर अपने कौशल को निखारने का प्रयास जारी रखना भी महत्वपूर्ण होता है। इस खेल को सीखना शुरू करने से पहले खुद को तैयार करें, जिसके लिए आपको वार्म-अप करना और स्ट्रेच करना बहुत जरूरी होता है। वार्म-अप: ऐसा करना आपकी मांसपेशियों के काम करने की क्षमता को बढ़ाता है। अगर आप कराटे की ट्रेनिंग करने से पहले मांशपेशियों में लचीलापन नहीं लाएंगे तो ये आपको किसी क्रिया को आसानी से करने में बाधा उत्पन्न करेंगी। यूएसए कराटे स्पोर्ट्स परफॉर्मेंस कोच ने एक वेबसाइट से बात करते हुए कहा, "कराटे के लिए आपको खास बॉडी बिल्डिंग एक्सरसाइज करने की जरूरत नहीं है। इसमें सब फंक्शनल एक्सरसाइज करनी होती है। इसके लिए चुनी गई प्रत्येक एक्सरसाइज का एक ही उद्देश्य है कि कोई कराटेका डोजो या रिंग में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सके।" स्ट्रेच: वॉर्म-अप के बाद स्ट्रेच करने की बारी आती है। एक बार मांसपेशियों में लचीलापन आने के बाद स्ट्रेच करने से शरीर के मूवमेंट करने की क्षमता बढ़ती है। सोमनाथ पाल चौधरी ने कहा, "आपके समझने की ताकत ही कराटे में कोच का काम करती है। इस खेल में अमूमन तीन टीचर होते हैं - आपका शरीर, आंखें और कान। सेल्फ ट्रेनिंग सेल्फ-रियलाइजेशन के समान होती है। मेरी ताकत क्या है, मेरी कमी क्या है? शारीरिक भाषा, कराटे फिगर, गति, लय, स्टेमिना को बढ़ाने की ट्रेनिंग, प्रतिरोध की ट्रेनिंग और कंडीशनिंग जैसी चीजों की बहुत जरूरत होती है। यह सब कुछ डोजो में कुछ घंटो के अभ्यास के साथ नहीं सीखा जा सकता है।" कराटे के प्रकारकराटे के तीन प्रकार हैं - कीहोन, काटा और कुमाइट। इन तीनों हिस्सों के बिना कराटे का कोई अस्तित्व नहीं है। कीहोन जापानी भाषा में इसका मतलब मूल बातें होता है यानी कराटे सीखने की मूल या शुरुआती तकनीकें। इसमें पंच, किक, स्टांस और अन्य तकनीकें शामिल होती हैं, जिन्हें कराटे के सभी छात्र सीखते हैं। हालांकि, ये तकनीकें आपके लिए तब तक जरूरी साबित नहीं होंगी जब तक आप यह नहीं समझते कि वास्तविक लड़ाई में उपयोग के लिए उन्हें एक साथ कैसे जोड़ा जाए। इसके बाद कराटे में काटा और कुमाइट आते हैं। कराटे ट्रेनिंग के यह दोनों प्रकार एक-दूसरे से काफी अलग है, लेकिन कराटे के छात्र के रूप में आपके सीखने के लिए दोनों ही जरूरी हैं। काटा: जापनी भाषा में काटा शब्द का मतलब फॉर्म (रूप) है। इसमें हर एक काटा कुछ खास मूवमेंट का एक सेट होता है, जो हर बार एक ही तरह से किया जाता है। आमतौर पर छात्रों को अगले बेल्ट के स्तर पर जाने के लिए कम से कम एक काटा को सीखना और उसका सही से प्रदर्शन करना होता है। ऐसे में एक छात्र एक सफेद बेल्ट काटा से शुरुआत करते हुए सबसे शीर्ष ब्लैक बेल्ट काटा तक जा सकता है।कुमाइट: कराटे के छात्र काटा को अकेले करते हैं, वहीं कुमाइट का उपयोग वास्तविक प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ लड़ने के लिए किया जाता है। इसमें छात्रों को एक-दूसरे के सामने लाया जाता है और फिर उनपर तकनीकों का उपयोग करने की अनुमति दी जाती है, जिससे छात्र यह समझ सके कि एक वास्तविक लड़ाई में एक तकनीक कैसे काम करेगी। काटा में सीखी गई कई तकनीकें कुमाइट में नजर आती हैं, क्योंकि छात्र जो सीखता है उसे यहां व्यवहार में लाता है। कराटे के नियम कराटे काटा को 8x8 मीटर की न फिसलने वाली मैट पर प्रतियोगियों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, जो इवेंट के दौरान सफेद कराटेगी (कराटेका की पोशाक) पहनकर खड़े होते हैं। एक काटा प्रतियोगिता तीन लोगों की एक टीम में या एक व्यक्तिगत बाउट के तौर पर हो सकती है। वहीं, प्रतिभागियों की संख्या ही एलिमिनेशन राउंड के लिए स्थापित किए जाने वाले समूहों की संख्या निर्धारित करती है। नियमित तौर पर कराटे काटा प्रतियोगिताओं में प्रतिभागी जोड़ी बनाकर प्रदर्शन करते हैं और उन्हें नीली या लाल बेल्ट दी जाती है। जब दोनों प्रतियोगी अपने-अपने काटा मूव्स का प्रदर्शन कर लेते हैं तो पांच जज अपने विजेता को चुनने के लिए फ्लैग सिस्टम (नीले या लाल ध्वज) का उपयोग करते हैं। टाई-ब्रेकर राउंड में प्रतियोगियों को एक ही राउंड में किसी भी काटा मूव का दोबारा इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं है। विश्व कराटे महासंघ (WKF) द्वारा स्थापित नियमों के अनुसार, "काटा नृत्य या नाट्य प्रदर्शन नहीं है। इसमें पारंपरिक मूल्यों और सिद्धांतों का पूरी तरह पालन करना चाहिए। लड़ाई के दौरान यह अपने मूल रूप में ही होना चाहिए और इसकी तकनीकों में एकाग्रता, शक्ति और संभावित प्रभाव को प्रदर्शित करना चाहिए। यह सही मायने में शक्ति, ताकत और गति को प्रदर्शित करना होता है। इसके साथ ही साथ इसमें अनुग्रह, लय और संतुलन भी होना जरूरी है।” प्रतियोगियों का आकलन 70 फीसदी तकनीकी प्रदर्शन के लिए और 30 फीसदी एथलेटिक प्रदर्शन के लिए किया जाता है। जिन प्रतियोगियों को उनके पक्ष में ज्यादा फ्लैग दिखाए जाते हैं, उन्हें ही विजेता घोषित किया जाता है।
विश्व कराटे फेडरेशन
भले ही अस्तित्व में काटा के कई रूप हैं, लेकिन विश्व कराटे फेडरेशन ने 102 काटा मूव्स को इस्तेमाल करने की इजाजत दी है और इन्हें WKF मान्यता प्राप्त इवेंट्स में ही प्रदर्शित किया जाता है। पाल चौधरी ने समझाते हुए इस बाबत कहा, “प्रतिभागियों की तकनीकों में काटा का सही एटीट्यूड (तरीका), क्षमता, सटीकता, समझ और जानकारी जैसे बुनियादी पहलुओं के जरिए आंका जाता है। सही एटीट्यूड का मतलब है कि जब कोई खिलाड़ी खेल क्षेत्र में आता है, तो उसकी स्पिरिट, आंखे, आसन और उसकी मन की स्थिति बहुत मायने रखती हैं।” ताकत और संतुलन कराटे में संतुलन और ताकत की काफी जरूरत होती है। यही वजह है कि कराटे में स्टांस को काफी महत्व दिया जाता है। कराटे में अपने गुरुत्वाकर्षण केंद्र के बारे में हमेशा ध्यान रखें। जब आप अपने पैर फैलाते हैं तो गुरुत्वाकर्षण केंद्र नीचे आ जाता है, जिससे आपको संतुलन के साथ हमले के लिए जोश मिलता है। बहुत से लोग सौ किलो या उससे अधिक वजन उठाने में सक्षम हो सकते हैं लेकिन वह कराटे में बेहतर नहीं हो सकते हैं। यह आपकी मांसपेशियों के बारे में नहीं है - यह संतुलन, ताकत और गति के बेहतर संबंध के बारे में है। स्टान्स: नेचुरल या वाकिंग स्टांस (शिजेंटाई-दाची): एक पैर आगे की ओर और दूसरा पैर 45 डिग्री के कोण पर बाहर की तरफ। फ्रंट स्टांस (ज़ेनकुत्सु-दाची): ठीक नेचुरल स्टांस की तरह, लेकिन इसमें आपके पैर और दूर होते हैं। इसके साथ ही आपका ज्यादातर वजन आपके सामने वाले पैर पर होता है। बैक स्टांस (नेकोशी-दाची): इसमें अपने पैरों को चलने की स्थिति में रखें, लेकिन आपका ज्यादातर वजन आपके पिछले पैर पर रहे। इसके साथ ही अपनी एड़ी को सामने की तरफ उठाएं। इसे कैट स्टांस के तौर पर भी जाना जाता है। कराटे के मूव्स कराटे मूव्स में मूल रूप में तीन चीजों का संयोजन होता है - पंच, ब्लॉक और किक। चोकू ज़ुकी एक जापानी शब्द है, कराटे में जिसका अर्थ सीधा पंच करना होता है। यह पंच या मुक्का मारने का सबसे सामान्य रूप है, क्योंकि इसके लिए आपके शरीर के अंग में अधिक गति की आवश्यकता नहीं होती है। स्ट्रेट पंच के अलावा अपर-कट, नाइफ-हैंड, स्पियर-हैंड, एल्बो-स्ट्राइक और बैक फिस्ट जैसे अन्य पंच होते हैं। ब्लॉक करना हमें सिखाता है कि आगे से आ रहे पंच को कैसे रोका जाए। इसमें अपनी सामान्य स्थिति से या तो अपने कदम आगे बढ़ाएं या पीछे हटें। कराटे ब्लॉक दो तरह के होते हैं - अपर राइजिंग ब्लॉक (एज युके) और मिडिल ब्लॉक (योको युके)। इसके बाद कराटे सीखने में किक का सबसे अहम योगदान होता है। कभी-कभी आपका ऊपरी शरीर हिलने में सक्षम नहीं होता है, क्योंकि आपके प्रतिद्वंद्वी ने आपको रोक रखा होता है। ऐसे में खुद छुड़ाने के लिए आप अपने पैरों का उपयोग कर सकते हैं। कराटे किक भी कई तरह की होती है लेकिन सामान्य तौर पर हाई किक, स्नैप किक और फ्रंट किक ज्यादा इस्तेमाल की जाती हैं।
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